दुनियाँ के ऐसे देश जहां पानी की खेती होती है और कोहरे से सिचांई होती है - इस धरती पर एक ऐसी जगह भी है, जहां पानी की खेती होती है। आज हम आपको रेगिस्तान में पानी उपजाने की अनूठी तक़नीक के बारे जानेंगे।
ये ख़बर उन देशों की है, जहां पानी का किल्लत है, लेकिन इन लोगों ने पानी संकट पर लगभग विजय पा ली है.. ये तो ओस और हवा से पानी बना लेते है।
भारत में बुंदेलखंड, विदर्भ, तमिलनाडु, कर्नाटक और राजस्थान समेत कई इलाकों में किसान पानी को तरस रहे हैं। सूखा प्रभावित इन इलाकों में खेती किसी अजूबे से कम नहीं है।
पानी और सिंचाई की किल्लत सिर्फ भारत में नहीं हैं दुनिया के कई और देश भी इससे जूझ रहे हैं, इसलिए नई-नई तकनीकों का प्रयोग बढ़ रहा है।
सरकारें और किसान वो सब कर रही हैं जिससे पानी बचाया जा सके या फिर उसका कम से कम इस्तेमाल कर ज्यादा उत्पादन हो।
पानी से खेती करने वाले देश
आज तक आपने गेहूं, चावल, कपास, सोयाबीन और तंबाकू की खेती देखी होगी लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस धरती पर एक ऐसी जगह भी है, जहां पानी की खेती होती है। आज हम आपको रेगिस्तान में पानी उपजाने की अनूठी तक़नीक से रू-ब-रू कराएंगे।
विज्ञान की तरक्की के साथ ही इंसान की तरक्की भी तय होती है और ऐसी ही मोरक्को के लोगों ने रेगिस्तान में पानी की खेती संभव कर इसकी मिसाल पेश की है।
वरना कौन सोच सकता है कि रेगिस्तान की बंजर ज़मीन जहां पानी की एक-एक बूंद के लिए लोग तरसते हैं, वहां पानी की खेती भी हो सकती।
सिंचाई के लिए ग्लूकोज की बोतलों से बनाइए देसी ड्रिप सिस्टम
इस अनूठी तरकीब से मोरक्को के पांच गाँवों के 400 लोगों को पीने का पानी मिल रहा है।
रेगिस्तान में बड़े-बड़े जाले लगाकर एकत्र करते हैं कोहरा
बंजर टीलों पर लगे बड़े जाल को देखकर आपको कतई अनुभव नहीं होगा कि इस जाल से पानी इकट्ठा करने का काम हो भी सकता है, लेकिन सच्चाई यही है कि मामूली से दिखने वाले इन जालों से कोहरा पकड़ने का काम किया जाता है और फिर इस कोहरे को पानी में तब्दील करने का काम किया जाता है।
इन जालों के जरिए ना सिर्फ पीने का पानी मिल रहा है, बल्कि इस बीहड़- रेगिस्तान में पेड़-पौधे उगने लगे हैं। इन जालों में छह महीने तक समंदर से ओस और कोहरा इकट्ठा किया जाता है।
खास किस्म के इन जालों पर ओस और कोहरे के कण फंस जाते हैं। उनकी नमी को एक पाइप से जगह-जगह बने छोटे कुओं में पहुंचा दिया जाता है, जिन्हें ठंडा रखा जाता है। ठंड पाते ही नमी पानी में बदल जाती है,
जिसे छान कर मनचाहे तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।
ये लोग भी कोहरा और ओस पकड़ने वाले जाल से पानी इकट्ठा कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं।
यहां यह काम वाटर फांउडेशन नाम की एक संस्था ने शुरू किया। यू-ट्यूब पर इस फाउंडेशन द्वारा डाले गए एक वीडियो में क्रिएटिंग वाटर फाउंडेशन के सदस्य डेनियल मीबर बताते हैं कि हम कोहरे का इस्तेमाल करके पीने के पानी के साथ-साथ खेती के लिए ज़रूरी पानी भी इकट्ठा कर लेते हैं।
इस क्षेत्र में लगभग 2500 ऐसे लोग हैं जिन्हें पीने का पानी भी नसीब नहीं होता। उन्हें इससे बहुत फायदा हुआ है। इससे पहले लीमा में पानी वाटर ट्रक्स में भरकर आता था और लोग इसके लिए 10 गुना ज़्यादा पैसा ख़र्च करते थे।
ये पानी इतना साफ भी नहीं होता था कि इसका इस्तेमाल पीने के लिए किया जाए।
शहर में रहने वाली फेलिज़ा विंसेट बताती हैं, 'हमें वाकई नहीं पता था कि हम किस तरह का पानी इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन हमारे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था।
हमें तो ये भी नहीं पता था कि ये पानी आता कहां से है।
कई बार हमारे पास ऐसा पानी था जो दूषित और गंदा होता था, कभी हमें कई दिनों तक बिना पानी के भी गुजारा करना पड़ता था, इसलिए हमें इस पानी की ज़रूरत थी।
पानी की इसी समस्या को दूर करने के लिए क्रिएटिंग वाटर फाउंडेशन ने कोहरे से पानी बनाने की शुरुआत की। अब यहां के लोगों की पानी की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है।
इजरायल में भी हवा को निचोड़कर करते हैं सिंचाई
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युवा किसानों का देश कहे जाने वाले इजरायल ने खेती से जुड़ी कई समस्याओं पर न सिर्फ विजय पाई है बल्कि दुनिया के सामने खेती को फायदे का सौदा बनाने के उदाहरण रखे हैं। 1950 से हरित क्रांति के बाद इस देश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इजरायल ने केवल अपने मरुस्थलों को हराभरा किया, बल्कि अपनी खोजों को चैनलों और एमएएसएचएवी (MASHAV, विदेश मामलों का मंत्रालय) के माध्यमों से प्रसारित किया ।
ताकि अन्य देशों के लोग भी इसका लाभ उठा पाएं। इजरायल-21 सी न्यूज पार्टल ने ऐसे की कुछ प्रमुख मुद्दों को उठाया है जिससे अन्न उत्पादन और उसके रखरखाव के लिए पूरे विश्व में इजरायल की तूती बोल रही है।
ताल-या वाटर टेक्नोलॉजी ने दोबारा प्रयोग में लिए जाने वाले ऐसे प्लास्टिक ट्रे का निर्माण किया है जिससे हवा से ओस की बूंदें एकत्र की जा सकती है। दांतेदार आकार का ये ट्रे प्लास्टिक को रीसाइकिल करके बनाया जाता है।
इसमें यूवी फिल्टर और चूने का पत्थर लगाकर पेड़ों के आसपास इसे लगाया जाता है।
रात को ये ट्रे ओस की बूंदों को साख लेता है और बूंदों को पौधों की जड़ों तक पहुंचाता है। इसके निर्माता अवराहम तामिर बताते हैं कि ट्रे कड़ी धूप से भी पौधों को बचाता है।
इस विधि से पौधों की 50 प्रतिशत पानी की जरूरत पूरी हो जाती है।
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ये ख़बर उन देशों की है, जहां पानी का किल्लत है, लेकिन इन लोगों ने पानी संकट पर लगभग विजय पा ली है.. ये तो ओस और हवा से पानी बना लेते है।
भारत में बुंदेलखंड, विदर्भ, तमिलनाडु, कर्नाटक और राजस्थान समेत कई इलाकों में किसान पानी को तरस रहे हैं। सूखा प्रभावित इन इलाकों में खेती किसी अजूबे से कम नहीं है।
पानी और सिंचाई की किल्लत सिर्फ भारत में नहीं हैं दुनिया के कई और देश भी इससे जूझ रहे हैं, इसलिए नई-नई तकनीकों का प्रयोग बढ़ रहा है।
सरकारें और किसान वो सब कर रही हैं जिससे पानी बचाया जा सके या फिर उसका कम से कम इस्तेमाल कर ज्यादा उत्पादन हो।
पानी से खेती करने वाले देश
आज तक आपने गेहूं, चावल, कपास, सोयाबीन और तंबाकू की खेती देखी होगी लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस धरती पर एक ऐसी जगह भी है, जहां पानी की खेती होती है। आज हम आपको रेगिस्तान में पानी उपजाने की अनूठी तक़नीक से रू-ब-रू कराएंगे।
विज्ञान की तरक्की के साथ ही इंसान की तरक्की भी तय होती है और ऐसी ही मोरक्को के लोगों ने रेगिस्तान में पानी की खेती संभव कर इसकी मिसाल पेश की है।
वरना कौन सोच सकता है कि रेगिस्तान की बंजर ज़मीन जहां पानी की एक-एक बूंद के लिए लोग तरसते हैं, वहां पानी की खेती भी हो सकती।
सिंचाई के लिए ग्लूकोज की बोतलों से बनाइए देसी ड्रिप सिस्टम
नॉर्थ अफ्रीका के देश मोरक्को में पानी की खेती होती है। यहां हवाओं की नमी को इकट्ठा करने वाली अनूठी तकनीक का इस्तेमाल कर लोगों ने रेगिस्तान की भूमि को पानी से सींचने का काम कर दिखलाया है।
इस अनूठी तरकीब से मोरक्को के पांच गाँवों के 400 लोगों को पीने का पानी मिल रहा है।
रेगिस्तान में बड़े-बड़े जाले लगाकर एकत्र करते हैं कोहरा
बंजर टीलों पर लगे बड़े जाल को देखकर आपको कतई अनुभव नहीं होगा कि इस जाल से पानी इकट्ठा करने का काम हो भी सकता है, लेकिन सच्चाई यही है कि मामूली से दिखने वाले इन जालों से कोहरा पकड़ने का काम किया जाता है और फिर इस कोहरे को पानी में तब्दील करने का काम किया जाता है।
इन जालों के जरिए ना सिर्फ पीने का पानी मिल रहा है, बल्कि इस बीहड़- रेगिस्तान में पेड़-पौधे उगने लगे हैं। इन जालों में छह महीने तक समंदर से ओस और कोहरा इकट्ठा किया जाता है।
खास किस्म के इन जालों पर ओस और कोहरे के कण फंस जाते हैं। उनकी नमी को एक पाइप से जगह-जगह बने छोटे कुओं में पहुंचा दिया जाता है, जिन्हें ठंडा रखा जाता है। ठंड पाते ही नमी पानी में बदल जाती है,
जिसे छान कर मनचाहे तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।
पेरू में भी इसी तरह मिलता है पीने का पानी
पेरू में लगभग 1,20,000 लोग ऐसे हैं जिनकी मूलभूत आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो पातीं। पेरू के एक शहर लीमा, जो रेगिस्तान में बसा हुआ है, में लगभग 20 लाख लोगों के सामने पानी की समस्या है।
ये लोग भी कोहरा और ओस पकड़ने वाले जाल से पानी इकट्ठा कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं।
यहां यह काम वाटर फांउडेशन नाम की एक संस्था ने शुरू किया। यू-ट्यूब पर इस फाउंडेशन द्वारा डाले गए एक वीडियो में क्रिएटिंग वाटर फाउंडेशन के सदस्य डेनियल मीबर बताते हैं कि हम कोहरे का इस्तेमाल करके पीने के पानी के साथ-साथ खेती के लिए ज़रूरी पानी भी इकट्ठा कर लेते हैं।
इस क्षेत्र में लगभग 2500 ऐसे लोग हैं जिन्हें पीने का पानी भी नसीब नहीं होता। उन्हें इससे बहुत फायदा हुआ है। इससे पहले लीमा में पानी वाटर ट्रक्स में भरकर आता था और लोग इसके लिए 10 गुना ज़्यादा पैसा ख़र्च करते थे।
ये पानी इतना साफ भी नहीं होता था कि इसका इस्तेमाल पीने के लिए किया जाए।
शहर में रहने वाली फेलिज़ा विंसेट बताती हैं, 'हमें वाकई नहीं पता था कि हम किस तरह का पानी इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन हमारे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था।
हमें तो ये भी नहीं पता था कि ये पानी आता कहां से है।
कई बार हमारे पास ऐसा पानी था जो दूषित और गंदा होता था, कभी हमें कई दिनों तक बिना पानी के भी गुजारा करना पड़ता था, इसलिए हमें इस पानी की ज़रूरत थी।
पानी की इसी समस्या को दूर करने के लिए क्रिएटिंग वाटर फाउंडेशन ने कोहरे से पानी बनाने की शुरुआत की। अब यहां के लोगों की पानी की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है।
इजरायल में भी हवा को निचोड़कर करते हैं सिंचाई
Also Read This :
एक ऐसा शहर जहाँ 2 महीने का होता है दिन और 1.5 महीने की होती है रात।
एक ऐसा देश जहाँ वेडिंग डेस्टिनेशन के मिलेगा 77 रुपए में घर
युवा किसानों का देश कहे जाने वाले इजरायल ने खेती से जुड़ी कई समस्याओं पर न सिर्फ विजय पाई है बल्कि दुनिया के सामने खेती को फायदे का सौदा बनाने के उदाहरण रखे हैं। 1950 से हरित क्रांति के बाद इस देश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इजरायल ने केवल अपने मरुस्थलों को हराभरा किया, बल्कि अपनी खोजों को चैनलों और एमएएसएचएवी (MASHAV, विदेश मामलों का मंत्रालय) के माध्यमों से प्रसारित किया ।
ताकि अन्य देशों के लोग भी इसका लाभ उठा पाएं। इजरायल-21 सी न्यूज पार्टल ने ऐसे की कुछ प्रमुख मुद्दों को उठाया है जिससे अन्न उत्पादन और उसके रखरखाव के लिए पूरे विश्व में इजरायल की तूती बोल रही है।
ताल-या वाटर टेक्नोलॉजी ने दोबारा प्रयोग में लिए जाने वाले ऐसे प्लास्टिक ट्रे का निर्माण किया है जिससे हवा से ओस की बूंदें एकत्र की जा सकती है। दांतेदार आकार का ये ट्रे प्लास्टिक को रीसाइकिल करके बनाया जाता है।
इसमें यूवी फिल्टर और चूने का पत्थर लगाकर पेड़ों के आसपास इसे लगाया जाता है।
रात को ये ट्रे ओस की बूंदों को साख लेता है और बूंदों को पौधों की जड़ों तक पहुंचाता है। इसके निर्माता अवराहम तामिर बताते हैं कि ट्रे कड़ी धूप से भी पौधों को बचाता है।
इस विधि से पौधों की 50 प्रतिशत पानी की जरूरत पूरी हो जाती है।
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