भारत के संसद भवन में क्यों लगे हैं उल्टे पंखे - संसद भवन सभी को अपनी और आकर्षित करता है संसद भवन को देखे बिना दिल्ली की यात्रा अधूरी मानी जाती है
ये इमारत आजादी से पहले बनी थी और इसी वजह से ये हर देशवासी के दिल में एक खास जगह रखती है।संसद भवन को देखे बिना दिल्ली की यात्रा अधूरी मानी जाती है
इस दुनिया मे 195 देश है। हर देश की राजनीतिक गतिविधियां उसके पार्लियामेंट से ही कंट्रोल की जाती हैं। इस वजह से हर देश का पार्लियामेंट हाउस उस देश के लिए बहुत खास और महत्वपूर्ण होता है।
उसी प्रकार भारत का संसद भवन भी बहुत खास है और ये ना केवल राजनीतिक महत्व रखता है बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
भारत में संसद भवन सर्वाधिक भव्य भवनों में से एक है और इसकी वास्तुकला को उत्कृष्ट दर्जा दिया गया है
इसका उद्घाटन तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने 18 जनवरी 1927 को किया था। संपूर्ण भवन को बनाने मे उस समय में कुल 83 लाख रुपये की लागत आई।
उस दौर में इतनी महंगी इमारतें बहुत कम हुआ करती थीं इस भवन की वास्तुकला का कार्यभार सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर ने संभाला था और इन्होंने ही नई दिल्ली की आयोजना और निर्माण का कार्य किया था।
दो अर्धवृत्ताकार भवन केंद्रीय हाल को खूबसूरत गुंबदों से घेरे हुए हैं। भवन के पहले तल का गलियारा 144 मजबूत खंभों पर टिका है।
प्रत्येक खंभे की लम्बाई 27 फीट (8.23 मीटर) है। बाहरी दीवार ज्यामितीय ढंग से बनी है तथा इसके बीच में मुगलकालीन जालियां लगी हैं। भवन करीब छह एकड़ में फैला है तथा इसमें 12 द्वार हैं जिसमें गेट नम्बर 1 मुख्य द्वार है।
गोलाकार गलियारों के कारण इस भवन को शुरू में सर्कलुर हाउस कहा जाता था। संसद भवन के निर्माण में भारतीय शैली को स्पष्ट देखा जा सकता है। प्राचीन भारतीय स्मारकों की तरह दीवारों तथा खिड़कियों पर छज्जों का निर्माण किया गया है।
सदन की दीवारों तथा सीटों का डिजाइन का सुन्दर नमूना सर रिचर्ड बेकर दवारा किया। स्पीकर की कुर्सी के विपरीत दिशा में पहले भारतीय विधायी सभा के अध्यक्ष विट्ठल भाई पटेल का चित्र स्थित है। अध्यक्ष की कुर्सी के नीचे की ओर पीठासीन अधिकारी की कुर्सी होती है जिस पर सेक्रेटी-जनरल (महासचिव) बैठता है।
इसके पटल पर सदन में होने वाली कार्यवाई का ब्यौरा लिखा जाता है। मंत्री और सदन के अधिकारी भी अपनी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखते हैं। पटल के एक ओर सरकारी पत्रकार बैठते हैं। सदन में 550 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। सीटें 6 भागों में विभाजित हैं।
प्रत्येक भाग में 11 पंक्तियां हैं। दाहिनी तरफ की 1 तथा बायीं तरफ की 6 भाग में 97 सीटें हैं। बाकी के चार भागों में से प्रत्येक में 89 सीटें हैं। स्पीकर की कुर्सी के दाहिनी ओर सत्ता पक्ष के लोग बैठते हैं और बायीं ओर विपक्ष के लोग बैठते हैं।
यह स्थायी सदन है। यह कभी भंग नहीं होती। 12 सदस्यों का चुनाव राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। ये सदस्य क ला, विज्ञान, साहित्य आदि क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियां होती हैं। इस सदन की सारी कार्यप्रणाली का संचालन भी लोकसभा की तरह होता है।
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15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारतीय हाथों में सत्ता हस्तांतरण इसी कक्ष में हुआ था। भारतीय संविधान का प्रारूप भी इसी हाल में तैयार किया गया था। आजादी से पहले केंद्रीय हाल का उपयोग केंद्रीय विधायिका और राज्यों की परिषदों के द्वारा लाइब्रेरी के तौर पर किया जाता था।
1946 में इसका स्वरूप बदल दिया गया और यहां संविधान सभा की बैठकें होने लगी। ये बैठकें 9 दिसम्बर 1946 से 24 जनवरी 1950 तक हुई। वर्तमान में केंद्रीय हाल का उपयोग दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों के लिए होता है, जिसको राष्ट्रपति संबोधित करते हैं।
इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि जब से संसद भवन बना है तभी से यहां पर उल्टे पंखे लगे हुए हैं और अब ये इसकी ऐतिहासिकता का हिस्सा बन गए हैं। इनके साथ कोई बदलाव नहीं किया गया है।
इस ऐतिहासिक धरोहर की ऐतिहासिकता को बनाए रखने के लिए अभी तक इसके पंखों को उल्टे ही रहने दिया गया है।
अगर आपको कभी संसद भवन जाने का मौका मिले तो वहां लगे उल्टे पंखों पर जरूर ध्यान दीजिएगा। ये वाकई में अद्भुत और अनोखा है।
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संसद भवन पर्यटकों की पसंद:
दिल्ली घूमने आये पर्यटकों को संसद भवन अपनी और आकर्षित करता है देश की ऐतिहासिक धरोहर संसद भवन को बिना देखे वापिस नहीं लौटता है।ये इमारत आजादी से पहले बनी थी और इसी वजह से ये हर देशवासी के दिल में एक खास जगह रखती है।संसद भवन को देखे बिना दिल्ली की यात्रा अधूरी मानी जाती है
इस दुनिया मे 195 देश है। हर देश की राजनीतिक गतिविधियां उसके पार्लियामेंट से ही कंट्रोल की जाती हैं। इस वजह से हर देश का पार्लियामेंट हाउस उस देश के लिए बहुत खास और महत्वपूर्ण होता है।
उसी प्रकार भारत का संसद भवन भी बहुत खास है और ये ना केवल राजनीतिक महत्व रखता है बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
भारत में संसद भवन सर्वाधिक भव्य भवनों में से एक है और इसकी वास्तुकला को उत्कृष्ट दर्जा दिया गया है
निर्माण:
संसद भवन का शिलान्यास 12 फरवरी 1921 को ड्यूक आफ कनाट ने किया था।इस काम को पूरा करने मे ६ वर्षो का लम्बा समय लगा थाइसका उद्घाटन तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने 18 जनवरी 1927 को किया था। संपूर्ण भवन को बनाने मे उस समय में कुल 83 लाख रुपये की लागत आई।
उस दौर में इतनी महंगी इमारतें बहुत कम हुआ करती थीं इस भवन की वास्तुकला का कार्यभार सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर ने संभाला था और इन्होंने ही नई दिल्ली की आयोजना और निर्माण का कार्य किया था।
आकार:
गोलाकार आवृत्ति में निर्मित संसद भवन का व्यास 170.69 मीटर का है तथा इसकी परिधि आधा किलोमीटर से अधिक (536.33 मीटर) है जो करीब छह एकड़ (24281.16 वर्ग मीटर)भू-भाग पर स्थित है।दो अर्धवृत्ताकार भवन केंद्रीय हाल को खूबसूरत गुंबदों से घेरे हुए हैं। भवन के पहले तल का गलियारा 144 मजबूत खंभों पर टिका है।
प्रत्येक खंभे की लम्बाई 27 फीट (8.23 मीटर) है। बाहरी दीवार ज्यामितीय ढंग से बनी है तथा इसके बीच में मुगलकालीन जालियां लगी हैं। भवन करीब छह एकड़ में फैला है तथा इसमें 12 द्वार हैं जिसमें गेट नम्बर 1 मुख्य द्वार है।
स्थापत्य:
संसद भवन का स्थापत्य नमूना अद्भुत हैइस भवन का डिजाइन मशहूर वास्तुविद लुटियंस दुवारा तैयार किया गया था। सर हर्बर्ट बेकर के निरीक्षण में ये कार्य पूरा किया गया था खंबों तथा गोलाकार बरामदों से निर्मित यह पुर्तगाली स्थापत्यकला का अदभुत नमूना पेश करता है।गोलाकार गलियारों के कारण इस भवन को शुरू में सर्कलुर हाउस कहा जाता था। संसद भवन के निर्माण में भारतीय शैली को स्पष्ट देखा जा सकता है। प्राचीन भारतीय स्मारकों की तरह दीवारों तथा खिड़कियों पर छज्जों का निर्माण किया गया है।
संस्था:
संसद भवन देश की सर्वोच्च विधि निर्मात्री संस्था है। इसके प्रमुख रूप से तीन भाग हैं- लोकसभा, राज्यसभा और केंद्रीय हाल।लोकसभा कक्ष:
लोकसभा कक्ष अर्धवृत्ताकार है। यह करीब 4800 वर्ग फीट में स्थित है। इसके व्यास के मध्य में ऊंचे स्थान पर स्पीकर की कुर्सी स्थित है। लोकसभा के अध्यक्ष को स्पीकर कहा जाता है।सदन की दीवारों तथा सीटों का डिजाइन का सुन्दर नमूना सर रिचर्ड बेकर दवारा किया। स्पीकर की कुर्सी के विपरीत दिशा में पहले भारतीय विधायी सभा के अध्यक्ष विट्ठल भाई पटेल का चित्र स्थित है। अध्यक्ष की कुर्सी के नीचे की ओर पीठासीन अधिकारी की कुर्सी होती है जिस पर सेक्रेटी-जनरल (महासचिव) बैठता है।
इसके पटल पर सदन में होने वाली कार्यवाई का ब्यौरा लिखा जाता है। मंत्री और सदन के अधिकारी भी अपनी रिपोर्ट सदन के पटल पर रखते हैं। पटल के एक ओर सरकारी पत्रकार बैठते हैं। सदन में 550 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। सीटें 6 भागों में विभाजित हैं।
प्रत्येक भाग में 11 पंक्तियां हैं। दाहिनी तरफ की 1 तथा बायीं तरफ की 6 भाग में 97 सीटें हैं। बाकी के चार भागों में से प्रत्येक में 89 सीटें हैं। स्पीकर की कुर्सी के दाहिनी ओर सत्ता पक्ष के लोग बैठते हैं और बायीं ओर विपक्ष के लोग बैठते हैं।
राज्य सभा:
इसको उच्च सदन कहा जाता है। इसमें सदस्यों की संख्या 250 तक हो सकती है। उप राष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है। राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव मतदान द्वारा जनता नहीं करती है,बल्कि राज्यों की विधानसभाओं के द्वारा सदस्यों का निर्वाचन होता है।यह स्थायी सदन है। यह कभी भंग नहीं होती। 12 सदस्यों का चुनाव राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। ये सदस्य क ला, विज्ञान, साहित्य आदि क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियां होती हैं। इस सदन की सारी कार्यप्रणाली का संचालन भी लोकसभा की तरह होता है।
केंद्रीय हाल:
केंद्रीय कक्ष गोलाकार है। इसके गुंबद का व्यास 98 फीट (29.87 मीटर) है। यह विश्व के सबसे महत्वपूर्ण गुम्बद में से एक है। केंद्रीय हाल का इतिहास में विशेष महत्व है।Also Read This :
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पाकिस्तान के शहर ग्वादर में रातोरात अचानक से गायब हुआ एक द्वीप
15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारतीय हाथों में सत्ता हस्तांतरण इसी कक्ष में हुआ था। भारतीय संविधान का प्रारूप भी इसी हाल में तैयार किया गया था। आजादी से पहले केंद्रीय हाल का उपयोग केंद्रीय विधायिका और राज्यों की परिषदों के द्वारा लाइब्रेरी के तौर पर किया जाता था।
1946 में इसका स्वरूप बदल दिया गया और यहां संविधान सभा की बैठकें होने लगी। ये बैठकें 9 दिसम्बर 1946 से 24 जनवरी 1950 तक हुई। वर्तमान में केंद्रीय हाल का उपयोग दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों के लिए होता है, जिसको राष्ट्रपति संबोधित करते हैं।
संसद के उल्टे पंखे :
ब्रिटिश काल में बना भारत का संसद भवन काफी अलग है। यहां पर ऐसी कई चीज़ें हैं जो सामान्य रूप से अलग हैं। संसद भवन के सेंट्रल हॉल में कमरे की सीलिंग पर उल्टे पंखे लगे हैं।दरअसल, हाल ही में भारत के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद में शपथ ग्रहण की थी और इस दौरान मीडिया और वहां उपस्थित लोगों का ध्यान यहां लगे उल्टे पंखों पर गया।
इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि जब से संसद भवन बना है तभी से यहां पर उल्टे पंखे लगे हुए हैं और अब ये इसकी ऐतिहासिकता का हिस्सा बन गए हैं। इनके साथ कोई बदलाव नहीं किया गया है।
इस ऐतिहासिक धरोहर की ऐतिहासिकता को बनाए रखने के लिए अभी तक इसके पंखों को उल्टे ही रहने दिया गया है।
अगर आपको कभी संसद भवन जाने का मौका मिले तो वहां लगे उल्टे पंखों पर जरूर ध्यान दीजिएगा। ये वाकई में अद्भुत और अनोखा है।
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